परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने लिखाई

गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता को अंतर में प्रार्थनाये

अंतर्घट प्रार्थना : 1

दिनांक-05 दिसम्बर 2012

जयगुरुदेव

निकल पड़े सतगुरु हाथ में सोता लेकर बगल दबी है गुदड़ी ।
साथ कमंडल शोभा न्यारी पहचानो नर नारी ।
सन 52 की वही सवारी अपने साथ है धारी ।
आसन उनका लग रहा जमी पर ऐसी लीला मौज पधारी ।
नए स्वरुप का दर्शन कर गुरु का सुख पा रहे नर नारी
माल खजाने की भूख नहीं है वो है सनातन धारी ।
जीव काज आये जो मालिक अपना कार्य विचारी ।
सगुण वन्सियाँ सोहे कर में सतगुरु बने मुरारी ।
मूर्ती मोहनी अति मन भावन सन्तन के हितकारी ।
शंकर जी का डमरू सोहे शंकर कशीधारी ।
गूढ रहस्य यह कथन गुरु की समझ लो ये नर - नारी ।
जयगुरुदेव वचन ये गुरु के कोई ना मेटनहारी ।
सतसत जयगुरुदेव नमन बोलत है सत्यधारी । जयगुरुदेव ||

अंतर्घट प्रार्थना : 2

दिनांक-13 दिसम्बर 2012

जयगुरुदेव

संत ने जान लई हर बात ।
जात - पात में डोलत नाहीं , डोलत शकल जमात । संत ने जान लई हर बात ।
करतब संत से चलता नहीं , चलत दीन की बात । संत ने जान लई हर बात ।
चतुर सयाने कौआ चातक , हिरन सुगंधी साथ । संत ने जान लई हर बात ।
मूक बधिर को संत ने चीन्हा , बोलत संत जमात।संत ने जान ली हर बात ।
आगे की सब स्वामी जाने , का जानेगें काग ।संत ने जान लई हर बात ।
चौहुंदिश में अब सतयुग अहैं , काहे फिरो निराश ।संत ने जान लई हर बात ।
गूढ निगुरे को सब कुछ मिल रहा, खोजत हैं चालाक ।
संत ने जान लई हर बात ।
संत हमारे सबके स्वामी , रखो तो विशवास । संत ने जान लई हर बात ।
। जयगुरुदेव ||

अंतर्घट प्रार्थना : 3

दिनांक-11 जनवरी 2013

जयगुरुदेव

नाम दियो स्वामी सतगुरु अनामी । भेद बतायो सभी देश का ।
तबहुं ना माने खलकामी । चेतन देश की चेतन सत्ता ।
भेद देत है अनामी । नये पुरुष नही है ये स्वामी ।
ये है कबीर जगजानी । पुनः रैदास कपड़े में आये ।
चरनदास जगजानी । जगजीवन जयगुरुदेव कहाये ।
यही है राधास्वामी ।नये कपड़े में फिर आ बैठे ।
समझो हे अज्ञानी । पुरुष अनामी है मेरे मालिक ।
समझो बात पुरानी । चार जन्म तक भेद बता रखा ।
फिर क्यों करो मनमानी ।
संत हमारे सबके स्वामी , रखो तो विशवास । संत ने जान लई हर बात ।
। जयगुरुदेव ||

अंतर्घट प्रार्थना : 4

दिनांक-12 जनवरी 2013

जयगुरुदेव

जानो रे मानो संतो की वाणी । मत बनो मूढ अनाडी ।
सन्त शिरोमणि सतगुरु होते । सन्त जगत विख्याता है रहते ।
निर्मोही जन इनको पाते । माया सबैह चबात रघुर को ।
जीवत आस राखियो साई से । तबहि बनेगी बात साई से ।
निगुर - सगुन का ज्ञान जान लो । गुरहि नाम की खान मणि को जान ।
गुरु का काज सिर धारो । निगुरु से क्या आशा तारो ।
नाम चमक अंतर में देखो , नाम है सकल जहाज ये जानो ।
जियत जगत जंजाल है छोरत है कोई कोय ।
। जयगुरुदेव ||

अंतर्घट प्रार्थना : 5

दिनांक 13 जनवरी 2013

जयगुरुदेव

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता । शब्द रूप व्यापक भगवनता ।
जाकी रही भावना जैसी । प्रभु मूरत देखी तिन तैसी । जयगुरुदेव ।।
सतगुरु मालिक अनामी , करि कृपा दर्शन दियो स्वामी ।
लगन युगान की प्यास बुझानी , तब जानयो सतगुरु स्वामी ।
दिन और रात गुरु संग डोले .सूरत सैल महिसानी ।
सतगुरु लाल हरे और नीले भेद तबहि मैं मानी ।
रूप अनोखा मोरे स्वामी का , अतभुद दिव्य उजयाली ।
रोम रोम में उगते सूरज , ऐसी सुखमय परम कहानी ।
सेवत चरण कई जनम बीते , अब मेरी पीर बुझानी ।
। जयगुरुदेव ||

गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता
सतगुरु जयगुरुदेव
गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता
अखंड भारत संगत गुरु की
अन्तर्घट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम बड़ेला
मोबाइल नंबर: 09651303867