मालिक द्वारा अन्तः प्रेरित प्रार्थना की मालिक अब तो आ जाओ

सुरत मेरी आयी सजधज कर , मालिक अब तो आ जाओ |
अँखियाँ मोरी प्यासी दरसन को कि अब तो आ जाओ |

नैनन नीर भरे दिन राति , याद तुम्हारी आये |
जो मन तरसे व्याकुल होके , दरद सहा न जाये कि अब तो आ जाओ |

जाऊं यहाँ तो कभी वहाँ मैं , ढूँढू जगह -जगह
कहीं न पाऊँ मालिक तुमको अंतर मन तुम ही बसे
प्रेम बाण मोहे भेदे हर पल कि मालिक अब तो आ जाओ |

दिन-दिन बीते माह बने , माह बने अब बरस
तरसे जिया और बरसे नैना ह्रदय पीर बढे कि अब तो आ जाओ |

तुझ संग प्रीत है मालिक मेरे , भावे न कछु मोहे इस जग में
पल-२ तरसे नैना बरसे , याद तुम्हारी तड़पाये कि प्रभु मेरे आ जाओ |

तुम्हरी चरण की धूल बनू मैं , तुम्ही में समाना चाहूं
तुम्हरी एक झलक पाकर मैं जीवन सफल बनाऊँ
और न कोई आस मेरी अब कैसे तुम्हे बताऊँ कि सतगुरु आ जाओ |

कछु न मांगू अब मैं तुमसे , तुमने किया निहाल
संत दरस को पाकर अब तो , हो जाऊं मालामाल
तुम्हारे चरण पकड़कर अब तो चलूँ अनामी धाम कि अब तो आ जाओ |

तुम्ही से धरती तुम्ही से अम्बर , तुम्हरी छटा निराली
सतयुग का आग़ाज तुम्ही हो , कैसे मैं सबको बताऊँ कि मालिक अब तो आ जाओ |

संत सनातन तुम हो मालिक , सत्ता तुम्हारे पास
जो तुम प्रत्यक्ष में नहीं आवो , कोई न माने मोरी बात कि गुरु मेरे आ जाओ |

परिवर्तन का चरम है आया , हम सब करें विलाप
मालिक अब प्रत्यक्ष में आवो , कहें पुकार पुकार
सब जाने सब देखें जग में " संत " की महिमा महान कि

सतगुरु आ जाओ
सतगुरु जयगुरुदेव

अखंड भारत संगत गुरु की से
लवी श्रीवास्तवा
नई दिल्ली