प्राचीन काल में जो भी महात्मा भारत वर्ष की धरती पर आये ,सबने किसी स्थान को निमित बना कर अपना काम किया | चाहे वो कबीर साहब , गोस्वामी जी , रैदास जी , पलटूदास , जगजीवन राम, भीखा साहब , नानक, राधास्वामी इत्यादि संतो ने अपना काम पूरा इसी धरा पर रहकर किया | परम पूज्य स्वामी जी महाराज (परम संत बाबा जयगुरुदेव ) ने भी जगह को निमित मात्र बनाया | मालिक के लीला खेलने के बाद स्वामी जी महाराज ने अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम – बड़ेला, को अपना काम पूरा करने के लिए आधार बनाया | ये मंदिर विश्व स्तरीय अध्यात्मिक आतंरिक अनुभव केंद्र है | विश्व में ऐसा इकलौता अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम – बड़ेला है| इसकी स्थापना मार्च सन् २०१२ में स्वामी जी महाराज के प्रत्यक्ष में रहते हुए हुआ था | इस मंदिर को गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी ने मालिक के प्रति श्रद्धा भाव से आंतरिक प्रेरणा के द्वारा अपनी दीन गरीबी में बनवाया | जिस जगह पर ये मंदिर बना हुआ है वहाँ पर पहले बहुत से सत्संग के कार्यक्रम हुआ करते थे | इस स्थान पर गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता जी अन्य प्रेमिओ के साथ गुरु जन्माष्टमी का कार्यक्रम मनाया करते थे । मालिक का जन्म भी जन्माष्टमी के दिन हुआ था| प्रेमी लोग मालिक को झूले में बैठाकर पूजन करते थे | ये कार्यक्रम अभी भी उसी जगह अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर में होता है | ये मंदिर पूरी तरह से मालिक (परम संत बाबा जयगुरुदेव ) को समर्पित है | जब मालिक ने १८ मई सन् २०१२ को मथुरा में लीला खेली तो किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मालिक की ये कैसी मौज है | जब ऐसा समाचार गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता को मिला तो वो उसी समय खबर सुन कर बेहोश हो गए | एक दिन के बाद जब उनको होश आया तब कई दिनों तक बिना भोजन किये हुए लगातार ध्यान और भजन में लगे रहे और अंतर में बराबर मालिक से रोकर पूछते रहे कि ये क्या मौज है |
गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता का घाट मालिक ने दया मेहर करके सन् २००२ में ही खोल दिया था| उनको अंतर में दिखाई और सुनाई बहुत पहले से ही देता था| मालिक ने भी सबको अंतर कि विद्या पढ़ाई है | गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ने अंतर में मालिक से पूछा कि ये कैसी मौज है ? आपने कहा था कि जब तक नामी रहता है तब तक नाम का असर रहता है (जयगुरुदेव नाम को स्वामी जी ने जागृत किया है ) तो अभी भी नाम या शब्द उतर रहा है| आपने ये भी कहा था कि जब सतयुग आएगा तो एक बीघा खेत में १०० मन अनाज पैदा होगा और मैं एक हाथ की बाल नाप करके दिखा दूंगा अभी तो सतयुग आया नहीं फिर ये कैसी मौज ? आपने ये भी कहा है कि संत वचन पलटे नहीं पलट जाये ब्रह्माण्ड | तो ये मौज आपकी कैसी है ? गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ने ये भी कहा कि अगर आप सच में चले गए तो मुझे आज्ञा दो कि मैं भी जाकर सब लोगो कि तरह दाढ़ी मूंछ बनवाऊ और भंडारा करू , ( क्योकि ये इस संसार का विधान है जिसका पिता इस दुनिया से चला गया तो उसका पुत्र अपने पिता के सम्मान में दाढ़ी मूंछ बनवा करके भंडारा करता है ) आप तो मेरे असली पिता हो | जब गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता ने मालिक से अंतर में ये प्रश्न पूछा तो मालिक थोड़ी देर तक चुप रहे , फिर बाद में बोले कि बच्चू आगे बताऊंगा | इतना जबाब सुनते ही गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता को बहुत खुशी हुई और ओ बराबर साधना में लगे रहे | उसके बाद गुरु महराज ने पुनः २९ मई सन् २०१२ को फिर मिले और बताया कि बच्चू कही जिन्दे का भंडारा होता है तुम दादा गुरु का भंडारा मनाना | गुरु भाई अनिल कुमार गुप्ता कही नही गये और साधना में लगे रहे, फिर उनको गुरु महराज ने ३ जून २०१२ को आदेश दिया कि बच्चू मेरा पुनर्जन्म का कार्यक्रम मनाओ। मैंने अपना कपड़ा बदल लिया है | इस मंदिर को जो तुमने मेरे जीते जी बनवाया है मैं इसमें अखंड रूप से विराजमान हो गया हूँ । जो भी प्रेमी मुझको खोजता हुआ यहाँ ३ बार आएगा और सच्चे मन से ध्यान और भजन करेगा उसकी मैं अंदर की आँख, कान खोल दूंगा। फिर गुरु महराज के अंतर के आदेशानुसार गुरु महराज के पुनर्जन्म का कार्यक्रम ०७ जून २०१२ को ग्राम – बड़ेला में बड़े ही धूम धाम से मनाया गया, जिसकी सूचना इंटरनेट के माध्यम से समस्त भारत और विश्व को भेजा गया | मालिक के अंतर आदेश के अनुसार इस मंदिर का नाम अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर पड़ा | इस मौके पर मालिक के आदेशानुसार कड़ा प्रसाद का वितरण हुआ | मालिक ने सर्वप्रथम वहाँ के आस पास के प्रेमिओ को इस मंदिर में विराजमान होने का अनुभव कराया और बताया | तब से अंतरघट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम बड़ेला से मालिक निरंतर दया और बरक्कत बाँट रहे है और आंतरिक अनुभव करा रहे है | मालिक इस समय अपना सारा काम अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम बड़ेला से कर रहे है | जो प्रेमी वहाँ जाता है | उसको मालिक अपने विराजमान होने का तत्क्षण प्रमाण दे देते है |
यह मंदिर परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आंतरिक आदेश के अनुसार अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर से 8 मीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में बन रहा है| यह मंदिर अदभुत अकल्पनीय, अवर्णनीय है | यह मंदिर अनामी पुरुष करतार अर्थात कुल मालिक का है जो इसी मंदिर में परदे के पीछे विराजमान है | इसी मंदिर में सतयुग जी महाराज अपनी शक्ति (बेदी ) के साथ विराजमान (उपस्थित) हैं | कुल मालिक के साथ ही साथ शंकर भगवान भी विराजमान हैं | इसकी महत्ता तो साधक ही बता सकता है । इस मंदिर की विशेषता है कि इसके अंदर पैर रखते ही अनुभव होने लगेगा | ये मालिक ने पुरे विश्व के सकल समाज के लिए बनवाया है | सतयुग जी महाराज के आने की ख़ुशी में गुरु पूर्णिमा का प्रथम हवन पूजन का कार्यक्रम इसी अखण्डेश्वर मंदिर में हुआ है | इस मंदिर में अनाम देश की सीधी पॉवर और दया मेहर की धार आती है | इसी मंदिर से मालिक के अंतर आदेशानुसार ऎश्वर्य प्रताप अनुभव कलश पुरे विश्व में जा रहा है | इस अनुभव कलश के माध्यम से विश्व के समस्त सकल समाज को घनाघोर आतंरिक अनुभव हो रहा है |
ग्राम बड़ेला एक छोटा सा गांव है जो भारत देश के उत्तर प्रदेश प्रान्त के फैज़ाबाद जिले में तहसील - रुदौली में पड़ता है| भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या भी इसी फैज़ाबाद जिले में पड़ती है | ग्राम बड़ेला के आस-पास का परिक्षेत्र अध्यात्मिक रूप से बहुत ही पौराणिक और पूज्यनीय है | इस परिक्षेत्र में बहुत से संत आये जैसे – जगजीवनराम, पलटूदास, भीखदास, गोस्वामी जी, रैदास जी इत्यादि संतो ने अपने चरण से यहाँ की भूमि को जागृत और अध्यात्मिक रूप से पवित्र किया है | ग्राम बड़ेला से ४ किमी की दूरी पर कल्याणी नदी है और 12 दूरी पर रामसनेही घाट है जहा मालिक साल में ५ से ६ बार आते थे और यही कल्याणी नदी में स्नान करते थे और यहीं रामसनेहीघाट से गुरु महाराज ने 1986 में 80 दिवसिए काफिला निकला था जिसका समापन इलाहबाद में हुआ था| अंतर्घट जयगुरुदेव मंदिर, ग्राम – बड़ेला से ठीक पश्चिम दिशा में ४ मीटर की दूरी पर संत जगजीवन साहेब की बिलुप्त गद्दी है | ग्राम – बड़ेला के इतिहास में ऐसी किदवंती है की अपने मनुष्य शरीर में रहते हुए संत जगजीवन साहेब 21 बार यहाँ आये, संत रैदास जी २ बार, संत भीखा दास जी 51 बार, प्रभु राम 1 बार और कृष्ण भगवान 1 बार अपने चरणो को ग्राम - बड़ेला की पावन भूमि पर रखा और उसे पवित्र और जागृत किया|